लघुपाराशरी एक ऐसा ग्रन्थ है जिसके बिना फलित ज्योतिष का ज्ञान अधूरा है. जो पराशर सिद्धांत के अनुयायी हैं - यहाँ स्पष्ट कर दूँ कि मैं भी ज्योतिष के क्षेत्र में पराशर का ही अनुयायी हूँ - उनके लिए तो यह 'गागर में सागर' की तरह है. इस पुस्तक का मूल नाम 'उडुदाय प्रदीप' है किन्तु यह लघुपाराशरी नाम से ही प्रसिद्ध है. वस्तुतः, विंशोत्तरी दशा को ही मुख्य दशा मानने के कारण इसका नाम 'उडुदाय' रखा गया. 'उडु' का अर्थ है नक्षत्र और 'दाय' का अर्थ है दशा अर्थात नक्षत्रों पर आधारित दशा. ज्ञातव्य है कि विंशोत्तरी दशा जन्मकालीन नक्षत्रों पर ही आधारित है. इस पुस्तक का महत्त्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि कलियुग में विंशोत्तरी दशा को ही सर्वाधिक फलदायी माना गया है. इस पुस्तक में फलित ज्योतिष के अकाट्य सिद्धांत केवल ४२ श्लोकों में समेट दिए गए हैं. एक-एक सूत्र अपने आप में अमूल्य है. अतः. फलित ज्योतिष के महासागर को पार करने में यह एक बहुमूल्य साधन सिद्ध हो सकती है. यहाँ यह भी ध्यातव्य है कि इस पुस्तक का कोई एक लेखक नहीं है - यह पुस्तक पाराशरी सिद्धांत को मानने वाले प्रकांड विद्वानों द्वारा सामूहिक रूप से सम्पादित है.
गोपाल
1 टिप्पणी:
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