बुधवार, 15 दिसंबर 2010

ग्रहों से सम्बंधित विभिन्न जानकारियाँ(२)

ग्रहों की नैसर्गिक शुभता/अशुभता

  • चन्द्रमा, बुध, बृहस्पति और शुक्र शुभप्रद होते हैं। क्षीण चंद्रमा, शनि, सूर्य, राहु, केतु और मंगल पापग्रह हैं।  पापग्रह से युत बुध भी पापग्रह होता है। 
  • बृहस्पति और शुक्र सर्वाधिक शुभप्रद हैं। शनि और मंगल अशुभ हैं।
  • चन्द्रमा सामान्यतः एक शुभ ग्रह है।
  • शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से दशमी तक चन्द्रमा मध्यम बली, इसके बाद दश दिनों तक अर्थात कृष्णपक्ष की पंचमी पर्यंत परमबली और इसके बाद दश दिन पर्यंत अर्थात् अमावस्या पर्यंत चन्द्रमा निर्बल होता है। 
  • बली चन्द्रमा शुभद और क्षीण यानि निर्बल चन्द्रमा नेष्ट होता है। शुभ ग्रह दृष्ट हो तो शुभद होता है।
  • बुध स्वाभाविक रूप से शुभ ग्रह है और अकेला हो तो शुभद ही होता हो। किन्तु, इसका शुभत्व इतना क्षीण है कि वह जैसे ग्रह के साथ युक्त होता है उसीसे प्रभावित हो जाता है।  अर्थात्, यदि पापग्रह के साथ हो तो पाप और शुभ ग्रह के साथ हो तो शुभ हो जाता है। 

    संकलनकर्ता: अम्बरीष

    बुधवार, 2 जून 2010

    ग्रहों से सम्बंधित विभिन्न जानकारियाँ(१)

    ग्रहों से सम्बंधित विभिन्न जानकारियाँ(१)

    • सूर्य कालपुरुष की आत्मा, चन्द्रमा चित्त(अंतःकरण), भौम सत्त्व(बल-पराक्रम), बुध वाणी, बृहस्पति सुख और ज्ञान, शुक्र काम और शनि उसका कष्ट है. 
    • सूर्य और चन्द्रमा राजा हैं, बृहस्पति और शुक्र मंत्री, बुध राजकुमार, भौम नेता और शनि भृत्य है. सूर्यजातक के अनुसार सूर्य राजा और चन्द्रमा रानी है तथा बृहस्पति मंत्री और शुक्र उसकी पत्नी है. 
    • सूर्य रक्ताभ श्यामल वर्ण, चन्द्रमा गौर वर्ण, बुध दूर्वा के सामान हरित श्यामल वर्ण, मंगल रक्ताभ गौर वर्ण, बृहस्पति गौर वर्ण, शुक्र श्वेत गौर, शनि कृष्ण वर्ण, राहू नील वर्ण तथा केतु का विचित्र (मिश्रित वर्ण) है.
    • सूर्य का ताम्र वर्ण, चंद्रमा का श्वेत, मंगल का अत्यंत लाल, बुध का तोते जैसा हरा, गुरु का हल्दी जैसा पीला, शुक्र का मिश्रित चित्र-विचित्र और शनि का काले रंग के पदार्थ पर स्वामित्व है. 
    • सूर्य पूर्व का, शुक्र अग्निकोण का, मंगल दक्षिण का, राहु नैऋत्य कोण का, शनि पश्चिम का, चन्द्रमा वायव्य का, बुध उत्तर दिशा का और गुरु ईशान कोण का स्वामी है. 
    • सूर्य और चन्द्रमा प्रकाशक ग्रह हैं. भौमादि शेष पाँच ताराग्रह तथा राहु और केतु छायाग्रह हैं. 

    संकलनकर्ता : अम्बरीष

    मंगलवार, 1 जून 2010

    ग्रहों का परस्पर सम्बन्ध

    ग्रहों का परस्पर सम्बन्ध

    (१)
    क्षेत्र सम्बन्ध
    यदि दो ग्रह एक दूसरे की राशि में हों.
    (२)
    दृष्टि सम्बन्ध
    यदि दो ग्रह एक दूसरे को पूर्ण दृष्टि से देखते हों.
    (३)
    अधिष्ठित राशीश दृष्टि सम्बन्ध
    जिस राशि में ग्रह हो उस राशि के स्वामी से पूर्ण दृष्ट हो.
    (४)
    युति सम्बन्ध
    यदि दो ग्रह एक ही राशि में स्थित हों.

    • क्षेत्र सम्बन्ध सर्वश्रेष्ठ है.
    • दृष्टि सम्बन्ध श्रेष्ठ है.
    • अधिष्ठित राशीश दृष्टि सम्बन्ध मध्यम है.
    • युति सम्बन्ध सामान्य है.
    ü      इन संबंधों का बल व प्रभाव क्रमशः क्षीणतर होता जाता है.
    ü      फलदीपिकानुसार परस्पर केन्द्र व त्रिकोण में स्थित ग्रह भी परस्पर संबंधी होते हैं. 


    संकलनकर्ता : अम्बरीष 

    मंगलवार, 25 मई 2010

    ग्रहों की परस्पर मित्रता

                          ग्रहों की परस्पर मित्रता            

    नैसगिर्क अथवा स्वाभाविक मित्रता

    सत्याचार्य का मत है कि सभी ग्रह अपनी मूलत्रिकोण राशि से २, ४, ५, ८, ९, १२ राशियों के स्वामियों से और अपनी उच्च राशि के स्वामी से स्वभाविक या नैसर्गिक मित्रता रखते हैं.

    ग्रह
    मित्र
    शत्रु
    सम
    सूर्य
    चन्द्र, मंगल, गुरु
    शुक्र, शनि
    बुध
    चन्द्र
    सूर्य, बुध
    -----
    मंगल, गुरु, शुक्र, शनि
    मंगल
    सूर्य, चन्द्र, गुरु
    बुध
    शुक्र, शनि
    बुध
    सूर्य, शुक्र
    चन्द्र
    मंगल, गुरु, शनि
    गुरु
    सूर्य, चन्द्र, मंगल
    बुध, शुक्र
    शनि
    शनि
    बुध, शुक्र
    सूर्य, चन्द्र, मंगल
    गुरु

    तात्कालिक मैत्री

    निसर्ग मैत्री के अतिरिक्त ग्रह की अपनी अधिष्ठित राशि से २, ३, ४, १०, ११, १२ राशियों में स्थित ग्रह तात्कालिक मित्र और शेष १, ५, ६, ७, ८, ९ राशियों में स्थित ग्रह तात्कालिक शत्रु होते हैं. 

    तात्कालिक मैत्री हर कुण्डली में अलग-अलग हो जाती है जबकि स्वाभाविक मैत्री स्थायी मैत्री है.

    संकलनकर्ता : अम्बरीष

    ग्रहों की स्वराशियाँ

    ग्रहों की स्वराशियाँ 

    • सूर्य सिंह में २१ अंश से ३० अंश तक स्वराशिस्थ होता है. 
    • चन्द्र कर्क राशि (० अंश से ३० अंश तक) में स्वराशिस्थ होता है. 
    • मंगल मेष राशि में १३ अंश से ३० अंश तक और वृश्चिक राशि में (० अंश से ३० अंश तक) स्वराशिस्थ होता है. 
    • बुध कन्या राशि में २१ अंश से ३० अंश तक और मिथुन राशि  में (० अंश से ३० अंश तक) स्वराशिस्थ होता है. 
    • गुरु धनु राशि में ११ अंश से ३० अंश तक और मीन राशि में (० अंश से ३० अंश तक) स्वराशिस्थ होता है. 
    • शुक्र तुला राशि में १६ अंश से ३० अंश तक और वृष राशि में (० अंश से ३० अंश तक) स्वराशिस्थ होता है. 
    • शनि कुम्भ राशि में २१ अंश से ३० अंश तक और मकर राशि में (० अंश से ३० अंश तक) स्वराशिस्थ होता है.
    •  ध्यातव्य है कि चन्द्र की मूलत्रिकोण राशि स्वराशि कर्क से भिन्न है परन्तु चन्द्र स्वराशिस्थ कर्क में ही होता है. जबकि अन्य ग्रहों की मूलत्रिकोण राशियाँ तथा स्वराशियाँ सामान हैं. अंतर मात्र अंशों का है. 

    संकलनकर्ता : अम्बरीष 

    ग्रहों की मूलत्रिकोण राशियाँ

    ग्रहों की मूलत्रिकोण राशियाँ


    • सूर्य सिंह राशि में १ अंश से २० अंश तक मूलत्रिकोण होता है.
    • चन्द्र वृष राशि में ४ अंश से ३० अंश तक मूलत्रिकोण होता है.
    • मंगल मेष राशि में १ अंश से १२ अंश तक मूलत्रिकोण होता है.
    • बुध कन्या राशि में १६ अंश से २० अंश तक मूलत्रिकोण होता है.
    • बृहस्पति धनु राशि में १ अंश से १० अंश तक मूलत्रिकोण होता है.
    • शुक्र तुला राशि में १ अंश से १५ अंश तक मूलत्रिकोण होता है.
    • शनि कुम्भ राशि में १ अंश से २० अंश तक मूलत्रिकोण होता है.



    ध्यातव्य है कि चन्द्र के अतिरिक्त प्रत्येक ग्रह अपनी राशि में ही मूलत्रिकोण अवस्था प्राप्त करता है. 


    संकलनकर्ता : अम्बरीष 

    सोमवार, 24 मई 2010

    ग्रहों का उच्च-नीच

    ग्रहों का उच्च-नीच 

    • सूर्य मेष राशि में तुंगस्थ अर्थात उच्च का होता है. 
    • चन्द्र वृष राशि में तुंगस्थ अर्थात उच्च का होता है.
    • मंगल मकर राशि में तुंगस्थ अर्थात उच्च का होता है.
    • बुध कन्या राशि में तुंगस्थ अर्थात उच्च का होता है.
    • वृहस्पति कर्क राशि में तुंगस्थ अर्थात उच्च का होता है.
    • शुक्र मीन राशि में तुंगस्थ अर्थात उच्च का होता है.
    • शनि तुला राशि में तुंगस्थ अर्थात उच्च का होता है.


    ग्रह जिस राशि में उच्च का होता है उससे सातवीं राशि में नीच का होता है. अर्थात्  


    • सूर्य तुला राशि में नीच का होता है.
    • चन्द्र वृश्चिक राशि में नीच का होता है.
    • मंगल कर्क राशि में नीच का होता है.
    • बुध मीन राशि में नीच का होता है.
    • बृहस्पति मकर राशि में नीच का होता है.
    • शुक्र राशि में नीच का होता है.
    • शनि मेष राशि में नीच का होता है.

    ग्रह राशि के एक निश्चित अंश पर परमोच्च होते हैं एवं उस राशि से सातवीं राशि के उसी अंश पर परम नीच होते हैं. 

    जैसे :


    • सूर्य मेष राशि के १० अंश पर परमोच्च और तुला राशि के १० अंश पर परम नीच होता है.
    • चन्द्र वृष राशि के ३ अंश पर परमोच्च होता है और वृश्चिक राशि के ३ अंश पर परम नीच होता है.
    • मंगल मकर राशि के २८ अंश पर परमोच्च होता है और कर्क राशि के २८ अंश पर परम नीच होता है. 
    • बुध कन्या राशि के १५ अंश पर परमोच्च होता है और मीन राशि के १५ अंश पर परम नीच होता है.
    • बृहस्पति कर्क राशि के ५ अंश पर परमोच्च होता है और मकर राशि के ५ अंश पर परम नीच होता है. 
    • शुक्र मीन राशि के २७ अंश पर परमोच्च होता है और कन्या राशि के २७ अंश पर परम नीच होता है. 
    • शनि तुला राशि के २० अंश पर परमोच्च होता है और मेष राशि के २० अंश पर परम नीच होता है. 

    गोपाल 

    बुधवार, 13 जनवरी 2010

    Lord of zodiac signs

    (मकर संक्रांति के अवसर पर इस ब्लॉग के पाठकों को मेरी शुभकामनाएं.)

    आज मैं अपने पाठकों को राशि-स्वामियों के बारे में जानकारी देना चाहता हूँ.
    • मेष राशि का स्वामी मंगल है.
    • वृष राशि का स्वामी शुक्र है.
    • मिथुन राशि का स्वामी बुध है.
    • कर्क राशि का स्वामी चन्द्र है.
    • सिंह राशि का स्वामी सूर्य है.
    • कन्या राशि का स्वामी बुध है.
    • तुला राशि का स्वामी शुक्र है.
    • वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल है.
    • धनु राशि का स्वामी बृहस्पति है.
    • मकर राशि का स्वामी शनि है.
    • कुम्भ राशि का स्वामी शनि है.
    • मीन राशि का स्वामी बृहस्पति है.
    स्पष्ट है कि ४, ३, २, १, १२, ११ राशियों के स्वामी क्रमशः चन्द्र, बुध, शुक्र, मंगल, वृहस्पति और शनि हैं. इसी प्रकार, ५, ६, ७, ८, ९, १० राशियों के स्वामी क्रमशः सूर्य, बुध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति और शनि हैं.


    गोपाल