सोमवार, 23 जून 2008

राशियों के क्रूर-सौम्य/पुरूष-स्त्री आदि विभाग


मेषादि बारह राशियों में क्रमशः क्रूर और सौम्य विभाग होते हैं। अर्थात्, सभी विषम राशियाँ क्रूर एवं सम राशियाँ सौम्य होती हैं। इसी प्रकार, सभी विषम राशियाँ पुरूष संज्ञक और और सम राशियाँ स्त्री संज्ञक हैं । अर्थात्,



  • मेष राशि - क्रूर, पुरूष और विषम,
  • वृष राशि - सौम्य, स्त्री और सम,
  • मिथुन राशि - क्रूर, पुरूष और विषम,
  • कर्क राशि - सौम्य, स्त्री और सम,
  • सिंह राशि - क्रूर, पुरूष और विषम,
  • कन्या राशि - सौम्य, स्त्री और सम,
  • तुला राशि - क्रूर, पुरूष और विषम,
  • वृश्चिक राशि - सौम्य, स्त्री और सम,
  • धनु राशि - क्रूर, पुरूष और विषम,
  • मकर राशि - सौम्य, स्त्री और सम,
  • कुम्भ राशि - क्रूर, पुरूष और विषम,
  • मीन राशि - सौम्य, स्त्री और सम, होती है।

जिस राशि में जातक का जन्म होता है, तदनुसार, उसका स्वाभाव होता है। तथापि, सभी क्रूर या पुरूष राशियों में, मेष, सिंह, कुम्भ अधिक क्रूर तथा मिथुन, तुला, धनु कम क्रूर होती है। सौम्य या स्त्री राशियों में वृष, मीन सर्वथा सौम्य तथा कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर मध्यम सौम्य होती हैं। फल कथन में राशीश के निर्बल रहने पर राशिबल ही देखा जाता है।



बली ग्रह पुरूष राशियों में हो तो मनुष्य धीर, सांग्रामिक और तेजस्वी होता है। कमजोर ग्रहों की स्थिति हो तो कठोर स्वाभाव, क्रूर और मूर्ख होता है।



सम राशियों में मनुष्य मृदु, युद्धभीत, विलासप्रिय, सौम्य, स्वस्थ एवं अपने लोगों को चाहने वाला होता है।
संकलनकर्ता : गोपाल

शुक्रवार, 20 जून 2008

राशियों की दिशाएं


पूर्व दिशा से प्रारम्भ करके मेषादि चार राशियों की क्रमशः दिशाएँ होती हैं। अर्थात्,
मेष, सिंह, धनु - पूर्व दिशा की,
वृष, कन्या, मकर - दक्षिण दिशा की,
मिथुन, तुला, कुम्भ - पश्चिम दिशा की एवं
कर्क, वृश्चिक, मीन - उत्तर दिशा की अधिपति राशियाँ हैं ।
राशियों की दिशा से नष्ट विषय, चोरी आदि के प्रश्न में दिशा का निर्धारण होता है तथा बलवान राशि की दिशा में कार्यसिद्धि होती है।
संकलनकर्ता : गोपाल

राशियों की प्रकृति

मेषादि क्रम से चार-चार राशियाँ क्रमशः पित्त, वात, त्रिदोष और कफ संज्ञक होती हैं । अर्थात्,

मेष, सिंह, धनु - पित्त,
वृष, कन्या, मकर - वात,
मिथुन, तुला, कुम्भ - त्रिदोष एवं
कर्क, वृश्चिक, मीन - कफ का प्रतिनिधित्व करती है।
संकलनकर्ता : गोपाल

राशियों के वर्ण

क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, ब्राह्मण ये मेष आदि राशियों के क्रमशः वर्ण होते हैं। अर्थात्,
मेष, सिंह, धनु क्षत्रिय,
वृष, कन्या, मकर वैश्य,
मिथुन, तुला, कुम्भ शूद्र एवं
कर्क, वृश्चिक, मीन ब्राह्मण राशियां हैं।
संकलनकर्ता : गोपाल

बुधवार, 18 जून 2008

राशियों का उदय

कन्या, तुला, वृश्चिक, सिंह, मिथुन एवं कुम्भ ये छः राशियाँ शीर्षोदय होती हैं। अर्थात्, पूर्वीय क्षितिज पर उदय के समय इनका सिर वाला भाग प्रथम दृष्टिगोचर होता है।

मकर, वृषभ, धनु, कर्क और मेष ये पाँच राशियाँ पृष्ठोदय होती हैं। अर्थात्, पूर्वीय क्षितिज पर उदय के समय इनका पृष्ठभाग पहले उदित होता है।
मीन राशि उभयोदय है। मीन राशि का स्वरुप दो मछलियों वाला है। ये दोनों मछलियाँ एक-दूसरे से विपरीत दिशा में अपना मुख रखे हुए हैं। इसीलिए, उदय के समय एक साथ सिर एवं पूंछ दिखने से इसे उभयोदय अर्थात् सिर एवं पूंछ से एक साथ उदित होने वाली कहा जाता है।
शीर्षोदय राशियाँ मूलतः शुभ और पृष्ठोदय राशियाँ सामान्यतः अशुभ होती हैं। मीन राशि सदैव मिश्रित या मध्यम फलद होती है। इसके अतिरिक्त, पृष्ठोदय राशियाँ उत्तरार्द्ध में और शीर्षोदय राशियाँ पूर्वार्ध में विशेष फलप्रद हैं। उभयोदय राशि मध्य में फलप्रद होती है। अर्थात्, पृष्ठोदय राशिस्थ ग्रह सम्पूर्ण दशा के अंत में, शीर्षोदय स्थित ग्रह आदि में तथा उभयोदय मध्य में फलद होते हैं।
प्रश्न विचार में, शीर्षोदय कार्यसाधक और पृष्ठोदय कार्यनाशक है।
प्रस्तुतकर्ता : गोपाल

राशियों का दिन-रात्रि बल

निम्नलिखित राशियां रात्रिबली संज्ञक होती हैं :-
मेष, वृष, मिथुन, कर्क, धनु एवं मकर
सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक और कुम्भ दिन बली कहलाती हैं। मीन राशि उभय सम बली है। कोई-कोई इसे संध्या बली भी मानते हैं। पराशर मत में उभयोदय राशि को संध्या बली ही माना गया है इसलिए मीन राशि, जो उभयोदय है, को संध्या बली माना जा सकता है।

दिवाबली लग्न राशियां दिन में प्रश्न आदि में सफलतादायक रहती हैं तथा रात्रिबली राशियां रात में ।
यात्रा प्रसंग में दिवाबली संज्ञक राशि के लग्न में दिन में तथा रात्रिबली संज्ञक राशि लग्न में रात्रि में यात्रा करना लाभदायक रहता है। दिन बली दिन में तथा रात्रि बली रात में शक्तिशाली होती है।
प्रस्तुतकर्ता : गोपाल

मंगलवार, 17 जून 2008

काल पुरूष के अंग

समस्त ब्रह्माण्ड रूपी विराट परमेश्वर का व्यक्त स्वरूप भचक्र या राशि चक्र कहलाता है। यह स्वरूप काल पुरूष के नाम से जाना जाता है। विभिन्न राशियाँ इस काल पुरूष के अंगो की प्रतिनिधि हैं।

मेष राशि मस्तक, वृष राशि मुख, मिथुन राशि छाती, कर्क राशि हृदय प्रदेश, सिंह राशि पेट, कन्या राशि कमर, तुला राशि नाभि और बस्ति, वृश्चिक राशि लिंग आदि गुप्तांग, धनु राशि जाँघ, मकर राशि घुटने, कुम्भ राशि पिंडलियां एवं मीन राशि पाँवों की प्रतिनिधि है।

अगर अधिक स्पष्टतया विचार किया जाय तो मेष का आधिपत्य सम्पूर्ण कपाल या खोपड़ी पर है। वृष राशि मुख स्थान से कंठ तक आधिपत्य रखती है। कंठ से नीचे दोनों कन्धों सहित हृदय से ऊपर का भाग मिथुन के अधीन है। हृदय व नाभि का मध्य भाग सिंह के अधीन एवं नाभि से नीचे बस्ति या पेडू से ऊपर का भाग, जिसमें कपड़ा बांधा जाता है, कन्या के नियंत्रण में है। तुला राशि नाभि से थोड़ा नीचे तथा लिंग आदि से ऊपर के भाग की अधिपति है। अर्थात्, लिंग और नाभि के बीच बाले भाग को दो भागों में बाँटने से ऊपर का भाग कन्या तथा नीचे का भाग तुला प्रदेश है। लिंग और गुदा प्रदेश तथा उस सीध में पड़ने वाला सम्पूर्ण नितम्ब भाग वृश्चिक राशि का स्थान है। तत्पश्चात्, घुटने के ऊपर जाँघ धनु राशि, दोनों घुटने मकर, दोनों पिंडलियाँ टखने तक कुम्भ एवं शेष भाग (पैर) मीन राशि के आधिपत्य में है।


जन्म के समय में जो राशि पाप पीड़ित या कमजोर हो, उसी अंग में जातक को आघात, विकार या निर्बलता होती है। शुभ ग्रह युक्त राशि वाला अंग पुष्ट होता है।
गोपाल

सोमवार, 9 जून 2008

राशियों का स्वरूप


  • मेष की आकृति मेंढे के समान होती है।
  • वृष बैल के आकार का होता है।
  • मिथुन की आकृति युग्मित पुरूष तथा स्त्री जैसा है। स्त्री के हाथ में वीणा और पुरूष के हाथ में गदा है।
  • कर्क का स्वरूप केंकड़े की तरह है।
  • सिंह की आकृति शेर की तरह है।
  • कन्या का स्वरूप ऐसा है कि नाव में एक कन्या है और उसके हाथ में दीपक है।
  • तुला का स्वरूप बाज़ार में तराजू लेकर कुछ तौलते हुए पुरूष जैसा है।
  • वृश्चिक की आकृति बिच्छू के सदृश है।
  • धनु का स्वरूप हाथ में धनुष लिए हुए ऐसे मनुष्य जैसा है जिसके कमर से नीचे का भाग घोड़े जैसा है।
  • मकर का मुँह(गले से ऊपर का भाग) मृग की तरह और शेष शरीर मकर (मगरमच्छ) की तरह है।
  • कुम्भ की आकृति हाथ में खाली घड़ा लिए मनुष्य जैसी है।
  • मीन दो मछलियों के जोड़े के रूप में है जिसमें दोनों मछलियों की पूँछें एक दूसरे से उलटी दिशा में हैं अर्थात् एक के मुख पर दूसरे का पूँछ है।

मंगलवार, 27 मई 2008

ज्योतिष : आधारभूत सिद्धांत

ज्योतिष एक विज्ञान है। मैं तो इसे पोंगापंथ मानता था । परन्तु, हाल ही में जब मैंने उत्सुकतावश ज्योतिष की कुछ किताबें पढीं तो मुझे लगा कि मैं ग़लत था । ज्योतिष एक क्रमबद्ध विज्ञान है । और विशेषकर इसका गणित भाग तो पूर्णतया वैज्ञानिक है ।

ज्योतिष वेद का एक अंग है । यह वेदों के छः अंगों में से एक अंग है । वेदों के छः अंग हैं - कल्प, शिक्षा, निरुक्त, व्याकरण, छंद और ज्योतिष । ज्योतिष को वेदों का नेत्र माना जाता है, क्योंकि यह न केवल भूत बल्कि भविष्य के बारे में भी संकेत देता है ।

ज्योतिष के स्कंध

ज्योतिष विज्ञान द्वारा गत का तो परीक्षण किया ही जाता है, आगत अर्थात् भविष्य में घटित होने वाली शुभाशुभ घटनाओं का संकेत भी मिलता है । ज्योतिष के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए कुछ प्रमुख आधारभूत तत्वों का ज्ञान आवश्यक है । ज्योतिष शास्त्र के मुख्यतः दो भेद है :-

(१) गणित ज्योतिष जिसमें मुख्यतः ग्रह तथा नक्षत्रों की गति का अध्ययन किया जाता है ।
(२) फलित ज्योतिष जिसमें सम्पूर्ण चराचर जगत पर ग्रहों तथा नक्षत्रों की गति के प्रभाव का अध्ययन किया जाता है ।

इसके अतिरिक्त विषय-वस्तु के आधार पर ज्योतिष को तीन प्रमुख स्कंधों में विभक्त किया गया है :-
(१) सिद्धांत
(२) संहिता और
(३) होरा

सिद्धांत का सम्बन्ध खगोल शास्त्र से है। इसी में गणित ज्योतिष भी है। वराहमिहिर की पंचसिद्धान्तिका गणित ज्योतिष की प्रसिद्ध रचना है।

संहिता ऐसे संकलन हैं जिनका उपयोग ग्रहों की स्थिति के आधार पर प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकंप, अकाल, महामारी आदि के साथ संसार, देशों या जनसमूह विषयक घटनाओं के फलित कथन में किया जाता है।

ग्रहों की गति/युति का मनुष्य या चेतन प्राणियों पर होने वाले प्रभावों का अध्ययन होरा स्कंध के अंतर्गत आता है।

संक्षेप में, सिद्धांत स्कंध का सम्बन्ध गणित ज्योतिष से, संहिता का सम्बन्ध मेदिनी ज्योतिष से तथा होरा का सम्बन्ध जातक स्कंध से है।

भचक्र

सर्वविदित है कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है। भारतीय ज्योतिष में पृथ्वी को ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का केन्द्र माना गया है । इसलिए, सूर्य का काल्पनिक परिक्रमा पथ, जो वस्तुतः पृथ्वी का सूर्य की परिक्रमा का पथ है, क्रांतिवृत्त कहलाता है। इसी ३६० अंश के क्रांतिवृत्त के दोनों ओर ९-९ अंश विस्तार की कुल १८ अंश चौड़ी पट्टी है, जिसे भचक्र कहते हैं । इसी पट्टी में सभी ग्रह स्थित हैं । इस भचक्र को ३० अंश के द्वादश समान भागों में विभक्त किया गया है। प्रत्येक ३० अंश का भाग एक राशि कहलाता है, जिसका नामकरण उसमें स्थित प्रसिद्ध तारामंडल के आधार पर किया जाता है।
भचक्र अपनी धुरी पर दिन में एक बार पूर्व से पश्चिम की ओर घूम जाता है। ऐसा पृथ्वी की अपनी धुरी पर २४ घंटे में एक बार घूमने के कारण प्रतीत होता है।

भचक्र और राशियां

भचक्र में कुल बारह राशियां हैं । एक राशि का विस्तार ३० अंश तक होता है। इस प्रकार, बारह राशियों का कुल विस्तार ३६० अंश होता है। बारह राशियों के नाम, उनके अंश विस्तार सहित, निम्नलिखित हैं :-

मेष (० से ३० अंश)
वृष (३० से ६० अंश)
मिथुन (६० से ९० अंश)
कर्क (९० से १२० अंश)
सिंह (१२० से १५० अंश)
कन्या (१५० से १८० अंश)
तुला (१८० से २१० अंश)
वृश्चिक (२१० से २४० अंश)
धनु (२४० से २७० अंश)
मकर (२७० से ३०० अंश)
कुम्भ (३०० से ३३० अंश)
मीन (३३० से ३६० अंश)

बारह राशियों में से छः सूर्य से संबंधित हैं तथा छः चन्द्र से संबंधित हैं ।
सूर्य से संबंधित राशियाँ - सिंह (५), कन्या (६), तुला (७), वृश्चिक(८), धनु (९), मकर (१०)
चंद्र से संबंधित राशियां - कर्क(४), मिथुन(३), वृष(२), मेष(१), मीन(१२), कुम्भ(११)

ग्रह (Planets)

भारतीय ज्योतिष के पश्चातवर्ती शास्त्रों में कुल मिलाकर नौ ग्रहों का उल्लेख किया गया है, जिनका प्रभाव मनुष्य के जीवन पर स्पष्टतया दृष्टिगोचर होता है। वे ग्रह हैं:-
सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, बृहस्पति(गुरु), शुक्र, शनि, राहु और केतु
राहु और केतु सपिंड ग्रह नहीं हैं। वे छाया ग्रह कहलाते हैं। दो बिन्दुओं पर, जहाँ चन्द्रमा अपने परिभ्रमण से सूर्य के क्रांतिवृत्त(पथ) को काटता है, उसके उत्तर वाला स्थान राहु और उसके १८० अंश सामने का स्थान केतु कहलाता है। राहु और केतु, यद्यपि अन्य ग्रहों की भांति भौतिक पिंड नहीं हैं, तथापि इनका पृथ्वी पर शक्तिशाली प्रभाव पड़ता है और इसलिए उनको नौ ग्रहों मं सम्मिलित किया गया है।
उपर्युक्त ग्रहों में से राहु और केतु के अतिरिक्त सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं। परिभ्रमण पश्चिम से पूरब की ओर होता है। चन्द्र पृथ्वी के सर्वाधिक निकट है तथा यह पृथ्वी की परिक्रमा करता है।

ग्रहों की औसत भ्रमण गति:मार्गी और वक्री ग्रह

सामान्य परिस्थितियों में ग्रहों की औसत भ्रमण गति (एक राशि को पार करने में लगा समय) इस प्रकार है :-

सूर्य - ३० दिन (एक अंश प्रतिदिन)
चंद्र - २ दिन ६ घंटे
मंगल - ४५ दिन
बुध - २७ दिन
गुरु - १ वर्ष
शनि - २ १/२ वर्ष (३० मास)
राहु - १८ मास
केतु - १८ मास

सूर्य की रश्मियों के समीप आ जाने पर ग्रह अपनी स्वाभाविक गति को छोड़कर तीव्र गति से या अपेक्षाकृत धीमी गति से भ्रमण करने लगते हैं। ऐसा बुध के साथ अक्सर होता है। ग्रहों का इस प्रकार तीव्र गति से घूमने लगना उनका अतिचारी हो जाना कहलाता है।

यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि सूर्य और चंद्र सदैव मार्गी गति से भ्रमण करते हैं अर्थात सदैव आगे की ओर अर्थात् मेष, वृष, मिथुन इत्यादि क्रम से चलते हैं। राहु और केतु सदैव वक्री होते हैं अर्थात् सदैव पीछे की ओर अर्थात् मीन, कुम्भ, मकर, इस क्रम से चलते हैं। अन्य ग्रह स्थिति अनुसार कभी आगे कभी पीछे चलते हैं अर्थात् वे मार्गी या वक्री दोनों हो सकते हैं। वास्तव में पीछे चलने जैसी घटना नहीं होती परन्तु पृथ्वी से वे इस प्रकार चलते हुए प्रतीत होते हैं।

नक्षत्र

जिस भचक्र में बारह राशियां स्थित हैं उसी में २७ नक्षत्र भी स्थित होते हैं। पहला नक्षत्र अश्विनी है जो मेष राशि के आरंभ में होती है और अन्तिम नक्षत्र रेवती है जो मीन राशि के अंत में स्थित है। प्रत्येक नक्षत्र का विस्तार १३ अंश २० कला होता है। प्रत्येक नक्षत्र में चार चरण या पाद होते हैं। नौ चरणों अर्थात् सवा दो (२ १/४) नक्षत्रों से एक राशि बनती है। प्रत्येक चरण (१/४ भाग) का विस्तार ३ अंश २० कला होता है। राशियों और नक्षत्रों का आरंभ मेष राशि के शून्य अंश से होता है। नक्षत्रों के नाम तथा उनके स्वामी निम्नलिखित हैं :-

नक्षत्र-स्वामी

अश्विनी-केतु
भरणी-शुक्र
कृत्तिका-सूर्य
रोहिणी-चन्द्र
मृगशिरा-मंगल
आर्द्रा-राहु
पुनर्वसु-बृहस्पति
पुष्य-शनि
आश्लेषा-बुध
मघा-केतु
पूर्वाफाल्गुनी-शुक्र
उत्तराफाल्गुनी-सूर्य
हस्त-चन्द्र
चित्रा-मंगल
स्वाती-राहु
विशाखा-बृहस्पति
अनुराधा-शनि
ज्येष्ठा-बुध
मूल-केतु
पूर्वाषाढा-शुक्र
उत्तराषाढा-सूर्य
श्रवण- चन्द्र
घनिष्ठा- मंगल
शतभिषा-राहु
पूर्वाभाद्रपद-बृहस्पति
उत्तराभाद्रपद-शनि
रेवती-बुध

गोपाल