मंगलवार, 17 जून 2008

काल पुरूष के अंग

समस्त ब्रह्माण्ड रूपी विराट परमेश्वर का व्यक्त स्वरूप भचक्र या राशि चक्र कहलाता है। यह स्वरूप काल पुरूष के नाम से जाना जाता है। विभिन्न राशियाँ इस काल पुरूष के अंगो की प्रतिनिधि हैं।

मेष राशि मस्तक, वृष राशि मुख, मिथुन राशि छाती, कर्क राशि हृदय प्रदेश, सिंह राशि पेट, कन्या राशि कमर, तुला राशि नाभि और बस्ति, वृश्चिक राशि लिंग आदि गुप्तांग, धनु राशि जाँघ, मकर राशि घुटने, कुम्भ राशि पिंडलियां एवं मीन राशि पाँवों की प्रतिनिधि है।

अगर अधिक स्पष्टतया विचार किया जाय तो मेष का आधिपत्य सम्पूर्ण कपाल या खोपड़ी पर है। वृष राशि मुख स्थान से कंठ तक आधिपत्य रखती है। कंठ से नीचे दोनों कन्धों सहित हृदय से ऊपर का भाग मिथुन के अधीन है। हृदय व नाभि का मध्य भाग सिंह के अधीन एवं नाभि से नीचे बस्ति या पेडू से ऊपर का भाग, जिसमें कपड़ा बांधा जाता है, कन्या के नियंत्रण में है। तुला राशि नाभि से थोड़ा नीचे तथा लिंग आदि से ऊपर के भाग की अधिपति है। अर्थात्, लिंग और नाभि के बीच बाले भाग को दो भागों में बाँटने से ऊपर का भाग कन्या तथा नीचे का भाग तुला प्रदेश है। लिंग और गुदा प्रदेश तथा उस सीध में पड़ने वाला सम्पूर्ण नितम्ब भाग वृश्चिक राशि का स्थान है। तत्पश्चात्, घुटने के ऊपर जाँघ धनु राशि, दोनों घुटने मकर, दोनों पिंडलियाँ टखने तक कुम्भ एवं शेष भाग (पैर) मीन राशि के आधिपत्य में है।


जन्म के समय में जो राशि पाप पीड़ित या कमजोर हो, उसी अंग में जातक को आघात, विकार या निर्बलता होती है। शुभ ग्रह युक्त राशि वाला अंग पुष्ट होता है।
गोपाल

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